Understanding Vaat Pitta and Cough in Ayurveda

Treating Vaat Pitta and Kaph with the help of Charak Samhita: चरक संहिता किताब प्रथम भाग के हिंदी अनुवादक पंडित काशीनाथ पांडेय शास्त्री जिनके पास BIMS की डिग्री है और अनुवादक डॉक्टर गोरखनाथ चतुर्वेदी जोकि MBBS है, की बुक से पेज नंबर 30 से यह ब्लॉग हिंदी अनुवाद से लिखा गया है। चरक संहिता में लिखा है की शारारिक जो बीमारिया होती है उनका कारण वात, पित्त और कफ है। जो क्रमशः वायु (गति), अग्नि (परिवर्तन), और जल (स्थिरता) का प्रतिनिधित्व करते हैं।

Understanding Vaat Pitta and Cough in Ayurveda
Ayurvedic healing from Charak Samhita

आयुर्वेद में शारीरिक और मानसिक रोगों की पहचान और उपचार

शरीर के रोग देव व्यपाश्रय( Deva Vyapashraya) और युक्ति व्यपाश्रय( Yukti Vyapashraya) से ठीक हो जाते है।

देव व्यपाश्रय( Deva Vyapashraya)- इसमें उपचार के लिए देवताओं, मंत्रों, यज्ञों और आध्यात्मिक साधनों का सहारा लिया जाता है।

युक्ति व्यपाश्रय( Yukti Vyapashraya)- इसमें तर्कसंगत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर उपचार किया जाता है। यह व्यावहारिक और चिकित्सा विज्ञान पर आधारित उपचार है।

मानसिक रोग ज्ञान से ( आत्मा से ठीक हो जाते है ) अगर मन ने मान लिया की हम बीमार है तो हमारा दिमाग बीमार हो जाता है। अगर मन में ये सोच लिया की हम ठीक है तो हम ठीक महसूस करते है।

ये सब रोग विज्ञानं, शास्त्रों के ज्ञान और मन की स्थिति या स्थिरता से ठीक हो जाते है। इसका अर्थ है की अर्थ है मानसिक शांति, संतुलन, और स्थिरता। यह एक ऐसी अवस्था है जहाँ व्यक्ति मानसिक रूप से शांत, स्थिर और संतुलित महसूस करता है, बिना किसी चिंता या तनाव के।

कुछ रोग समाधी से ठीक हो जाते है जिसका अर्थ है एक योगिक और आध्यात्मिक अवस्था जिसे मानसिक एकाग्रता और आत्मज्ञान की चरम स्थिति के रूप में समझा जाता है। समाधि के दौरान व्यक्ति पूरी तरह से आत्मचेतना और बाहरी दुनिया से मुक्त हो जाता है। योग के दौरान वयक्ति शुद्ध चेतना या परमात्मा के साथ एकाकार हो जाता है। भोग और विषयो से मन को हटाकर आत्मा में लगाना समाधी ही है।

“चारक संहिता में वात, पित्त, कफ और खांसी की पहचान, लक्षण और उपचार

ज्यादातर वात यानी की वायु से उत्पन्न रोग है क्योंकि आयुर्वेद में वायु (वात) गुणों के कारण वायु शरीर में संतुलन और विभिन्न क्रियाओं को संचालित करता है। वायु (वात) की हानि या असंतुलन शरीर में कई समस्याओं को जन्म दे सकता है। लघु (Light): वायु हल्का होता है, जिससे यह शरीर में हल्कापन और गति का अनुभव कराता है। शीत (Cold)– ( Vata has a cold nature) वायु का स्वभाव ठंडा होता है, जिससे यह शरीर में ठंडक और शीतलता लाता है। वात असंतुलन से जोड़ों, मांसपेशियों और शरीर के अन्य हिस्सों में दर्द उत्पन्न हो सकता है। वात दोष से श्वसन तंत्र में सूखापन या कमजोरी आ सकती है, जिससे सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। सूक्ष्म (Subtle): वायु बहुत सूक्ष्म होता है, जो शरीर के अंदर गहराई तक पहुंचकर सूक्ष्म गतिविधियों को नियंत्रित करता है। वात दोष के बढ़ने से गैस, अपच, पेट फूलना, और कब्ज जैसी पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। शीत से वायु बढ़ती है और उषणता से कम होती है मतलब की गर्मी में वायु कम चलती है। वायु को वैदिक शास्त्रों में शीत सवभाव वाली माना गया है। गतिशील (Mobile): वायु में गतिशीलता होती है, जिससे शरीर के अंदर निरंतर गति, संचार और गतिविधियां होती हैं। वायु की अधिकता से नींद की समस्याएं, बेचैनी और अनिद्रा हो सकती है। त्वचा और बालों में रूखापन, होंठों का फटना, और शरीर में जल की कमी वात की अधिकता के लक्षण होते हैं।

पित्त का लक्षण– पित्त रोग में गर्म( पित्त दोष का असंतुलन शरीर में अत्यधिक गर्मी का अनुभव कराता है), पाचन में जलन, तेज़ी से भूख लगना और पाचन क्रिया में असंतुलन महसूस हो सकता है, पित्त असंतुलन से पेट में जलन और एसिडिटी की समस्या हो सकती है। पित्त की अधिकता से शरीर में अधिक पसीना आ सकता है, खासकर गर्मी में। आंखों का रंग पीला होना या पेशाब का रंग गहरा होना पित्त के असंतुलन का संकेत हो सकता है। महिलाओं में पित्त की अधिकता मासिक धर्म की समस्याएं उत्पन्न कर सकती है।

पित्त (Pitta) को शांत करने के लिए उन औषधियों का उपयोग किया जाता है जो इसके विकृत गुणों को संतुलित करती हैं। इन औषधियों और खाद्य पदार्थों का सेवन पित्त को संतुलित करने में सहायक होता है- तुलसी, कोल्ड ड्रिंक्स (जैसे नींबू पानी), गुलाब (Rose), अश्वगंधा, चंदन, आंवला (Indian gooseberry), ब्रह्मी (Brahmi), शतावरी (Shatavari), मिश्री, पुदीना, तरबूज, खीरा, और ककड़ी, जो ठंडे होते हैं और पित्त को शांत करते हैं।

Cough) के लक्षण- ले में खुजली या जलन महसूस, बलगम के साथ खांसी, गले या छाती में भारीपन, खांसी के कारण गले में दर्द, यदि खांसी किसी संक्रमण के कारण हो रही है, तो हल्का बुखार खांसी (Cough) के लक्षण विभिन्न कारणों के आधार पर भिन्न हो सकते हैं।

आयुर्वेद में इसको शांत करने के लिए विपरीत गुणों वाले पदार्थों का उपयोग किया जा सकता है। ताजे फल (जैसे तरबूज, खीरा), शहद, ताज़ा अदरक की चाय या हल्दी वाला दूध, गुड़ नींबू पानी, चिकन सूप या सब्ज़ियों का सूप, अदरक, तुलसी, और हल्दी का काढ़ा, जो शरीर को गर्मी प्रदान करता है और खांसी को कम करता है। इन पदार्थों का सेवन खांसी के लक्षणों को कम करने और गले को आराम देने में सहायक हो सकता है। गुनगुने पानी से गरारे करने से गले की जलन और सूजन में आराम मिलता है। शहद को सीधे या गर्म पानी में मिलाकर पीने से खांसी में राहत मिलती है

साध्य रोगों का आयुर्वेदिक उपचार और असाध्य रोगों में डॉक्टर की भूमिका

असाध्य रोगों के लिए औषधियों का उपयोग नहीं किया जाता, क्योंकि इनका उपचार केवल औषधियों के माध्यम से संभव नहीं होता। असाध्य रोग (Asadhya Rog) का अर्थ है ऐसे रोग या चिकित्सा स्थितियाँ जिन्हें आयुर्वेद या अन्य चिकित्सा पद्धतियों के माध्यम से ठीक नहीं किया जा सकता। ये रोग आमतौर पर गंभीर होते हैं। असाध्य रोगों के कुछ उदाहरण हैं। कैंसर: कुछ प्रकार के कैंसर जो इलाज में कठिन होते हैं। आल्साइमर रोग, एड्स, जटिल जीन संबंधी विकार। असाध्य रोगों में लक्षण अक्सर लंबे समय तक बने रहते हैं। असाध्य रोगों का उपचार करने के लिए चिकित्सा प्रक्रियाएँ आमतौर पर सिम्प्टोमैटिक होती हैं, जिसका अर्थ है कि उपचार लक्षणों को नियंत्रित करने पर केंद्रित होता है।

Conclusion

आयुर्वेद में, साध्य रोगों के लिए विभिन्न औषधियाँ, जड़ी-बूटियाँ, और उपचार विधियाँ उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए, जुकाम, बुखार, और खांसी जैसी समस्याएँ साध्य हैं। आयुर्वेद में साध्य रोगों के लिए न केवल औषधियों का उपयोग किया जाता है, बल्कि आहार, व्यायाम, ध्यान, और शुद्धिकरण प्रक्रियाएँ भी शामिल होती हैं। चरक संहिता में वात, पित्त, और कफ से संबंधित रोगों की पहचान और उनके उपचार के उपायों का विस्तृत वर्णन किया गया है।

Disclaimer: This information is for educational purposes only and is based on the Charak Samhita. It is not a substitute for professional medical advice, diagnosis, or treatment. Always consult a healthcare provider, Ayurvedic Expert for medical concerns. Individual results may vary. Make India Healthy is not responsible for any adverse effects or consequences resulting from the use of this information. This advice is only general information. This is not replacement of Professional consultation. कंटेंट में बताया गए आयुर्वेदिक उपाय केवल पारंपरिक आयुर्वेदिक ग्रंथों पर आधारित हैं। ये आधुनिक चिकित्सा विज्ञान से संबंधित नहीं है, और इनका प्रभाव अलग-अलग वयक्तियो पर अलग हो सकता है। हर वयक्ति का शरीर अलग होता है। हम ये दावा नहीं करते कि ये इलाज सभी के लिए समान रूप से काम करेंगे या किसी प्रकार के साइड इफेक्ट नहीं होंगे। कृपा किसी भी दवा का प्रयोग करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें। हम दवा के लिए कोई भी मेडिकल दावा नहीं करते हैं। यह वेबसाइट केवल सामान्य जानकारी के लिए है और यहां दिया गया कंटेंट किसी भी प्रकार का कानूनी दावा और दवा के विकल्प में नहीं है। हम यह सलाह देते हैं कि आप अपने स्वास्थ्य और चिकित्सीय स्थितियों के लिए हमेशा एक लाइसेंस प्राप्त स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर से ही सलाह लें। बयान में कहा गया है कि एफडीए (खाद्य एवं औषधि प्रशासन) या किसी और नियामक संस्था द्वारा विशेष रूप से मूल्यांकन नहीं किया गया है। ये उत्पाद या इलाज किसी भी बीमारी का निदान, उपचार या रोकथाम करने का वादा या गारंटी नहीं देता.

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