Ayurvedic Skin Diseases Remedies of Charak Samhita: चरक संहिता किताब प्रथम भाग के हिंदी अनुवादक पंडित काशीनाथ पांडेय शास्त्री जिनके पास BIMS की डिग्री है और अनुवादक डॉक्टर गोरखनाथ चतुर्वेदी जोकि MBBS है, की बुक से यह ब्लॉग हिंदी अनुवाद से लिखा गया है। चरक संहिता में कई प्रकार के त्वचा रोगों और बवासीर जैसी बीमारियों के इलाज के लिए कुछ विशेष उपाय बताए गए हैं। यह शरीर को शुद्ध करने, पाचन में सुधार और त्वचा को स्वस्थ रखने के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के बारे में बताता है।
आयुर्वेद में चरक संहिता के अनुसार कई प्रकार के त्वचा रोग का इलाज औषधियों से
आयुर्वेद में चरक संहिता के अनुसार कई प्रकार के त्वचा रोग जैसे कुष्ठ, दाद, खाज, भगंदर, बवासीर, डर्मेटोफाइट्स और अन्य त्वचा संबंधी रोगों का इलाज औषधियों से किया जा सकता है। इन औषधियों का प्रयोग गाय के पित्त को पीसकर सरसों के तेल में मिलाकर पेस्ट के रूप में किया जाता है। यहां इन औषधियों को कैसे तैयार किया जाता है और उनके फायदों के बारे में विस्तार से बताया गया है।
आरग्वध (अमलतास), ऐदागज (पनावड़), करंज (नाटा करंज), वास (वास के पत्ते), गुडूची (गिलोय), मदन (मैनफल), द्वि हरिद्रा (हल्दी और दारू हल्दी), गंधविरोचन, सूर (देवदार), खदिर। (खैर), धव (धवन), नीम (नीम के पत्ते), विडंग (वायविडंग), कनेर की छाल, भोजपत्र की गांठें, लहसुन, शिरीष की छाल, लूमाशा, जटामांसी, गुग्गुलु, कृष्ण गंध, मारवा के पत्ते, इंद्रजौ, सतवन, कूट, मुलायम चमेली की पत्तियां, वच, हरीतकी के बीज, मेहंदी के बीज, त्रिवृत निष्ट, जमालगोटा, भिलावा, गेरी, अर्जुन की छाल, मानशिला, आल, हरिताल, गरधूम, छोटी इलायची, कासिस, अर्जुन के पेड़ की छाल, नागरमोथा, सर्ज (राल)।
औषधियों का मिश्रण बनाने की विधि ( Method of making mixture of medicines)
इन औषधियों का प्रयोग विभिन्न प्रकार के त्वचा रोगों के उपचार में किया जाता है। यहां बताया गया है कि यह किस बीमारी में कैसे मददगार है।
ऊपर बताई गयी किसी भी औषधीय पौधे की चयनित पत्तियां, छाल या बीज एकत्र करें। तैयारी की विधि
1- इन सबको अच्छे से पीसकर पाउडर बना लें.
2- इस चूर्ण को गाय के पित्त में अच्छी तरह से पीस लें ताकि यह गाढ़ा मिश्रण बन जाए।
3- इसके बाद इस मिश्रण को सरसों के तेल में मिलाकर मालिश के लिए औषधीय पेस्ट तैयार कर लें।
औषधि के लाभ एवं उपयोग की विधि किस रोग में किया जाता है
1- कुष्ठ रोग(Leprosy)
इलाज: कुष्ठ रोग के इलाज में अर्जुन की छाल, गिलोय, गुग्गुल और लुमाशा जैसी औषधियां अच्छी मानी जाती हैं। इनके मिश्रण को त्वचा पर लगाने और नियमित रूप से मालिश करने से संक्रमण का स्तर कम हो जाता है और त्वचा के घाव धीरे-धीरे ठीक होने लगते हैं।.
2-दाद, खाज, खुजली ( Ringworm, scabies, itching)
उपचार: नीम की पत्तियां, कनेर की छाल, लहसुन और हल्दी का लेप लगाने से खुजली और त्वचा रोगों से राहत मिलती है। इसे त्वचा पर लगाने से फंगस और बैक्टीरिया कम हो जाते हैं, जिससे दाद और खुजली में आराम मिलता है।
3-भगंदर: Fistula:
भगंदर के उपचार के लिए हल्दी, शिरीष की छाल और अर्जुन का उपयोग किया जाता है। गाय के पित्त का पेस्ट बनाकर सरसों के तेल में मिलाकर लगाने से धीरे-धीरे भगंदर ठीक हो जाता है और संक्रमण से राहत मिलती है।
4-Ringworm, scabies, itching
बवासीर के उपचार में अमलतास, गिलोय और कूट का उपयोग अच्छा माना जाता है। इसे प्रभावित जगह पर लगाने से सूजन कम होती है
5-मस्सा (मस्से)( Warts)
इसके उपचार के लिए त्रिवृत निष्ट, नागामोथा और पौधे के बीज का पेस्ट पेस्टिल पर लगाने से यह सुखकर मिलता है। इसे नियमित रूप से लगाने से धीरे-धीरे-दारा चर्मकिल की समस्या दूर होती है।
6- अपुची (लिम्फ नोड्स की सूजन) Apuchi (swelling of lymph nodes)
चमेली की कोमल पत्तियां, कनेर की छाल और शिरीष की छाल का मिश्रण सूजन को कम करने में सहायक है। इसे प्रभावित जगह पर लगाने से सूजन से राहत मिलती है और रक्त संचार भी बेहतर होता है।
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