Why you should not stop sneezing

Sneezing को हिंदी में छींक कहते है। अगर हम छींक को रोकने की कोशिश करते हैं तो यह शरीर में अत्यधिक दबाव पैदा कर सकती है। यह एक प्राकृतिक शारीरिक प्रक्रिया है। छींक तब आती है जब शरीर नाक में जलन पैदा करने वाले बाहरी कण घुस जाते है। यह आमतौर पर सर्दी, एलर्जी या धूल के संपर्क में आने के कारण आती है।

Why you should not stop sneezing
What happens when you stop sneezing?

छींक को रोकना स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है क्योंकि यह शरीर की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो हमारे नाक और सांस लेने वाले रस्ते को साफ करने में मदद करती है। इसको रोकने से कान में दर्द हो सकता है। इसके आलावा सिर और गर्दन की मांसपेशियों में खिंचाव पैदा होता है। आंखों को भी दिक्कत हो सकती है। छींक रोकने से चेहरे और सिर पर अचानक दबाव बढ़ जाता है। छींक रोकने से हृदय और BP पर भी असर पड़ सकता है। हालाँकि ऐसा नहीं है की छींक हमेशा आती है। सबसे फायदे की बात यह है कि छींक लेने से नाक में फंसे बैक्टीरिया और वायरस बाहर निकल जाते है, जिससे संक्रमण कम हो जाता है। इसलिए छींक को रोकने की बजाय उसे आने देना चाहिए।

जैसे की पहले आपको बताया की छींक एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसके आने से कई स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं। यह धूल, और polution के कण , बैक्टीरिया और वायरस जैसे हानिकारक कणों को हटाकर नाक और श्वसन प्रणाली को साफ करने में मदद करता है। छींक संक्रमण को रोकने, एलर्जी से राहत देने और हानिकारक पदार्थों को फेफड़ों तक पहुंचने से रोकने में मदद करती है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत रखता है। यह हमारे मस्तिष्क को ताजगी का एहसास देता है, जिससे तनाव कम हो सकता है। छींक को रोकने की बजाय आने देना चाहिए, क्योंकि यह शरीर को स्वस्थ और स्वच्छ रखने में अहम भूमिका निभाती है।

आयुर्वेद में छींक को शरीर की आवश्यक प्रक्रिया माना जाता है। यह श्वसन और पाचन तंत्र को साफ करने में मदद करती है। यह वात और कफ दोषों को संतुलित करने में मदद करती है और नाक से अवांछित कणों जो गंदे धूल कण होते है उनको बाहर निकालने का साधन माना जाता है। आयुर्वेद में, नस्य क्रिया (नाक में औषधीय तेल डालना) छींक से संबंधित समस्याओं का मुख्य समाधान है, जो नाक को साफ करने और श्वसन प्रणाली को मजबूत करने में मदद करता है। इसका संबंध पाचन तंत्र से भी हो सकता है, क्योंकि कमजोर पाचन से छींकें बढ़ सकती हैं। छींक को रोकने के बजाय इसे स्वाभाविक रूप से आने देना चाहिए, क्योंकि यह शरीर को अशुद्धियों से मुक्त रखती है।

छींक को रोकने के लिए हमेशा अपने नाक को साफ रखना चाहिए। इसको रोकने के लिए एलर्जी से बचना और नस्य क्रिया (नाक में तेल डालना) शामिल हैं। छींकने के दौरान अपनी नाक और मुंह को ढँक कर रखे ताकि वायरस से बचा जा सके। बैक्टीरिया और वायरस को हवा में फैलने से रोककर दुसरो और खुद का बचाव होता है। आप गहरी साँस ले सकते है, ठंडी हवा से बचना और पानी पीना भी इसको रोकने में सहायक हो सकता है। यदि छींकें एलर्जी के कारण आती हैं, तो एलर्जी पैदा करने वाले पदार्थों से बचना फायदेमंद है।

छींक को रोकने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं, जैसे की आप गर्म पानी या हर्बल चाय पी सकते है। नमक के पानी से नाक धोना और नींबू और आंवला जैसे विटामिन सी युक्त खाद्य पदार्थ अपने आहार में ले सकते है। गहरी सांस ले और फिर रोके, तनाव कम करने के लिए योग और प्राणायाम का अभ्यास करने से भी इसको कम किया जा सकता है। हमेशा अपने नाक के बालों को साफ और छोटा रखने से भी आपको मदद मिल सकती है। अगर किसी खास गंध या एलर्जी के कारण छींक आती है तो इससे बचना चाहिए। इन उपायों को अपनाकर छींक को कम और नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन अगर यह समस्या लगातार बनी रहे तो डॉक्टर से सलाह लेने की सलाह दी जाती है।

अंत में, छींक आना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है इसीलिए इसको आने देना चाहिए। यह नाक या गले में जलन पैदा करने वाले पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करती है। यह आमतौर पर एलर्जी, संक्रमण, बहरी वातावरण के कण या पर्यावरण में बदलाव के कारण हो सकती है। यदि छींक बार-बार या गंभीर रूप से आती है तो इसके कारणों को समझना और ज़रूरत पड़ने पर चिकित्सक से परामर्श करना महत्वपूर्ण है।

क्या छींक आना किसी बीमारी का संकेत हो सकता है?

जी हां, छींक आना किसी बीमारी का संकेत हो सकता है। यदि छींक लगातार बनी रहती है और इसके साथ बुखार, गले में खराश, खांसी या सिरदर्द जैसे अन्य लक्षणों दिखाई दे रहे हो तो यह संक्रमण या बीमारी का संकेत हो सकता है। इसका एक मुख्य और आम कारण सर्दी और फ्लू हैं, लेकिन छींक एलर्जी, साइनसाइटिस, अस्थमा या राइनाइटिस (नाक की सूजन) जैसी समस्याओं के कारण भी हो सकती है। यदि छींक अन्य गंभीर लक्षणों के साथ आती है या लंबे समय तक बनी रहती है, तो डॉक्टर से परामर्श करना उचित होगा ताकि सही निदान किया जा सके और सही समय पर इसका उपचार किया जा सके।

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