Eating in Quantity

Eating in Quantity- मनुष्य को हमेशा सीमित मात्रा में भोजन करना चाहिए, न कि अधिक मात्रा में। इसका अर्थ है कि मनुष्य को संतुलित मात्रा में भोजन करना चाहिए। यह विचार स्वास्थ्य और आहार के महत्व को बताता है। जब हम ज़्यादा खाते हैं, तो इसका हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है, जैसे मोटापा, पाचन समस्याएं और अन्य बीमारियाँ। इसलिए मात्रापूर्वक का अर्थ है शरीर की आवश्यकता के अनुसार ही भोजन करना। इस प्रकार के आहार से शरीर को उचित पोषण मिलता है और स्वास्थ्य बेहतर रहता है। इस विचार को आयुर्वेदिक सिद्धांतों में भी अपनाया गया है, उचित आहार से जीवन में संतुलन और मानसिक शांति मिलती है।

Eating in Quantity
Eating in Quantity

आयुर्वेद में भोजन के सेवन को सीमित करने के लिए कुछ विशेष बातें बताई गयी है, जिन्हें आम तौर पर नजरअंदाज कर दिया जाता है। भोजन का पहला निवाला मानसिक रूप से अग्नि को समर्पित करें और प्रत्येक निवाले को 32 बार चबाकर धीरे-धीरे खाएं। भोजन के दौरान मौन रहें और मन बनाकर खाये ताकि आपका मन और शरीर इसे पूरी तरह से स्वीकार कर सकें। भोजन की शुरुआत में आपको भूख लगती है, लेकिन धीरे-धीरे आपका पेट भरा हुआ महसूस होने लगता है।

भोजन को 20-25 मिनट में ख़त्म करना सही माना जाता है और सुखासन में बैठकर खाने से न केवल पाचन में सुधार होता है बल्कि ज़्यादा खाने से भी बचाव होता है। अपने हाथों की गति धीमी रखें और भोजन के बाद हल्की सी डकार आना इस बात का संकेत है कि आपने सही मात्रा में खाया है। दिन का मुख्य भोजन दोपहर में करें, जब पाचन अग्नि सबसे मजबूत हो, और रात का खाना हल्का रखें। इन आसान तरीकों से आप सीमित मात्रा में खाना खा पाएंगे और शरीर को उचित पोषण भी मिलेगा।

आयुर्वेद के अनुसार भोजन की मात्रा हमेशा उसकी सुगंध और रंग देखकर तय करनी चाहिए, क्योंकि ये आपकी पाचन अग्नि को जागृत करते हैं और उतना ही खाना चाहिए जितना उसको देख के मन होता है। जीभ और पेट के संतुलन पर जरूर ध्यान दें क्योंकि कई बार जीभ स्वाद के कारण और खाना चाहती है और पेट भरा होता है तो समझे की आपने सही मात्रा में भोजन कर लिया है अब और ज्यादा न खाये। यदि भोजन के दौरान आपकी सांसें तेज हो जाती हैं, तो यह संकेत है कि आप अधिक खा रहे हैं, इसलिए धीरे-धीरे खाएं और सांस पर ध्यान दे।

भोजन की मात्रा वात, पित्त और कफ दोषों के अनुसार तय करें। सामान्य से अधिक भोजन वात के लिए उपयुक्त है, पित्त के लिए सिमित मात्रा में और हल्का और कम भोजन कफ के लिए उपयुक्त है। भोजन मौन रहकर करें, क्योंकि इससे पाचन शक्ति बढ़ती है और सही मात्रा का पता चलता है। इसीलिए भोजन करने के दौरान बातचीत ना करे। सात्विक भोजन कम मात्रा में भी अधिक पोषण प्रदान करता है, इसलिए हल्का और स्फूर्तिदायक भोजन खाएं, जो शरीर और दिमाग दोनों के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।

आयुर्वेद के अनुसार भोजन की मात्रा व्यक्ति की पाचन शक्ति पर निर्भर करती है। इसके अलावा शरीर की प्रकृति और वर्तमान परिस्थितियों जैसे स्वास्थ्य, मौसम और शारीरिक गतिविधि पर निर्भर करती है। जब शरीर सवस्थ नहीं होता तो कम ही खाया जाता है। भोजन इतना ही होना चाहिए कि आसानी से पच सके। अपने पेट को तीन भागों में विभाजित करके भोजन करना चाहिए। पहले हिस्से में ठोस भोजन, दूसरा तरल और एक चौथाई खाली रखना चाहिए। व्यक्ति को अपनी भूख से कम खाना चाहिए और भोजन का के लिए सही समय सुबह 10-11 बजे और शाम 6-7 बजे है।

जब आप दूसरा भोजन शुरू कर रहे हो तो उस से पहले पिछले भोजन का पाचन पूरा हो जाना चाहिए। सर्दियों में पाचन शक्ति अधिक होने पर शरीर थोड़ा अधिक खाना मांग सकता है, जबकि गर्मियों में हल्का, स्वस्थ आहार और संतुलित भोजन उपयुक्त रहता है। जिन लोगो की वात प्रकृति है उनको पौष्टिक भोजन करना चाहिए, पित्त प्रकृति वालों को ठंडा और कम मसालेदार भोजन करना चाहिए और कफ प्रकृति वालों को हल्का और गर्म भोजन करना चाहिए। भोजन के बाद शरीर हल्का महसूस होना चाहिए और किसी भी प्रकार का भारीपन, आलस्य या अपच नहीं होना चाहिए। भोजन को धीरे-धीरे चबाकर खाने से पाचन में सुधार होता है और बीमारियों से बचाव होता है। अगर आपको खाना कहते वक़्त कोई भी परेशानी हो तो डॉक्टर से सलाह लें।

सीमित मात्रा में भोजन करना आयुर्वेद का सिद्धांत है, जो पाचन शक्ति को संतुलित करने और शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करता है। यह शरीर की आवश्यकता के अनुसार सही पोषण प्रदान करता है। अधिक मात्रा में खाने से अपच और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। हमेशा जितनी भूख है और पाचन शक्ति के अनुसार भोजन करने से न केवल शारीरिक स्वास्थ्य सुधर जाता है बल्कि मानसिक स्वास्थ्य भी ठीक रहता हैं। इस प्रकार, सीमित भोजन करने से हमारे जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है और हम स्वस्थ, ऊर्जावान और संतुष्ट महसूस करते हैं।

शरीर को उचित पोषण प्रदान करने के लिए कितनी कैलोरी की आवश्यकता हो सकती है?

युवा व्यक्ति को प्रतिदिन लगभग 2,000 से 2,500 कैलोरी की आवश्यकता होती है। पुरुषों के लिए, यदि शारीरिक गतिविधि कम है तो 2,000-2,500 कैलोरी की आवश्यकता होती है और अगर वह युवा अधिक काम करते है तो यह 2,500-3,000 कैलोरी ले सकते है। महिलाओं के लिए, यह 1,800-2,200 कैलोरी के बीच है, और यदि शारीरिक गतिविधि ज्यादा कर रही है तो 2,200-2,400 कैलोरी लेनी चाहिए। हालाँकि, आयुर्वेद में कैलोरी की मात्रा से ज्यादा महत्व भोजन की गुणवत्ता, उसकी ताजगी और पाचन शक्ति को दिया जाता है। सही मात्रा( Eating in Quantity), संतुलित और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन शरीर को सही तरीके से पोषण प्रदान करता है।

यदि किसी व्यक्ति की पाचन शक्ति कमजोर है तो उसे कितनी कैलोरी का सेवन करना चाहिए?

यदि किसी व्यक्ति की पाचन शक्ति कमजोर है तो उसे हल्के भोजन के रूप में कैलोरी लेनी चाहिए। उन्हें भारी और तैलीय भोजन से परहेज करना चाहिए, ताकि पाचन पर अतिरिक्त दबाव न पड़े। इसके बजाय, उन्हें आसानी से पचने योग्य और हल्का भोजन जैसे सूप, दलिया, खिचड़ी और उबली हुई सब्जियां का सेवन करना चाहिए। इन आहारों में कम कैलोरी होती है, जो शरीर को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करती है और पाचन प्रक्रिया को ठीक रखते है। कमजोर लोगो को थोड़ी थोड़ी मात्रा में बीच बीच में भोजन करते रहना चाहिए।

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