Milk Qualities mentioned in Charak Samhita- चरक संहिता किताब प्रथम भाग के हिंदी अनुवादक पंडित काशीनाथ पांडेय शास्त्री जिनके पास BIMS की डिग्री है और अनुवादक डॉक्टर गोरखनाथ चतुर्वेदी जोकि MBBS है, की बुक से पेज नंबर 39 से यह ब्लॉग हिंदी अनुवाद से लिखा गया है। इस शास्त्र में 8 प्रकार के दूध के गुण बताये गए है जो की हमारे लिए बहुत ज्यादा लाभकारी है। सब दूध वैसे तो सामान्य होते है। लेकिन हर दूध किसी न किसी रोग को ठीक करता है। हम आपको आयुर्वेद में बताये गए गुणकारी दूध के बारे में बताते है।
चरक संहिता में 8 प्रकार के दूध के गुण और लाभ का उल्लेख किया गया है।
ये सभी प्रकार के दूध अलग-अलग गुणवत्ता से युक्त होते हैं। कुछ दूध मधुर रस वाले होते हैं, जो शरीर को मजबूत बनाते हैं। कुछ दूध अच्छे वीर्य को तैयार करते है और बुद्धि को बढ़ाने में सहायक होते हैं। ये जीवन के लिए हितकारी होते हैं और थकावट को भी दूर करते हैं। दूध पित्त को कम करता है और अलग-अलग दोषों को कम करता है। ये विभिन्न प्रकार के रोगो को दूर करते है।
चरक संहिता में विभिन्न 8 प्रकार के दूध के गुणों का वर्णन
1- गाय का दूध – यह पचने में आसान होता है इसलिए बच्चो को खासकर infant के लिए गाये का दूध बताया जाता है। गाये का दूध मोटापा कम करता है, खांसी में लाभदायक है , और बल प्रदान करता है। इसके नियमित सेवन से शरीर को ऊर्जा और ताकत मिलती है यह दूध शरीर में मौजूद बुरे कीटाणु कम करता हैं।
2- भैंस का दूध – यह बहुत अधिक गाढ़ा होता है , पौष्टिक और चिकनाई प्रदान करने वाला होता है। यह शरीर की ताकत को बढ़ाता है, नींद लाने में मदद करता है और पित्त संबंधी समस्याओं को दूर करता है।
3- बकरी का दूध – यह दूध पचने में आसान होता है और इसमें मीठा रस होता है। यह कफ और पित्त दोष के लिए फायदेमंद है, प्लेटलेट्स को संतुलित करता है। यह दूध दस्त, बुखार और श्वसन प्रणाली की समस्याओं में फायदेमंद है।
4- भेड़ का दूध – यह सेहत के लिए अच्छा, पौष्टिक और गर्म प्रकृति का होता है। यह वात और कफ दोषों को संतुलित करता है और पित्त को बढ़ने से रोकता है।
5- ऊँटनी का दूध – यह दूध कफ दोष को दूर करने में सहायक है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है तथा श्वसन संबंधी रोगों में विशेष लाभकारी है।
6- हाथी का दूध – यह बहुत दुर्लभ और अत्यधिक ऊर्जावान है। यह पुरुषों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है।
7- घोड़ी का दूध – यह हल्का और पचाने में आसान होता है। यह पित्त और कफ दोष को संतुलित करता है। हमारी त्वचा को भी लाभ पहुंचाता है। यह रिकवरी करने और कुष्ठ रोग में भी फायदेमंद है।
8- मानव दूध – यह दूध नवजात शिशुओं के लिए सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि इसमें शरीर को बुरे कीटाणुओं को कम करने की शक्ति होती है। यह शिशुओं के विकास के लिए आवश्यक है।
चरक संहिता में वर्णित विभिन्न प्रकार के दूध का उपयोग कई आयुर्वेदिक अनुष्ठानों और चिकित्सा पद्धतियों में किया जाता है।
- 1- अवगाहन की क्रिया में- अवगाहन का अर्थ है नहाना या शरीर पर लगाना। दूध से नहाने से त्वचा मुलायम होती है और रूप रंग में निखार आता है। यह त्वचा संबंधी समस्याओं और थकान को भी दूर करता है।
- 2- वाजीकरण में– वाजीकरण का अर्थ है शक्ति बढ़ाने और शरीर को ऊर्जा प्रदान करने के लिए कुछ विशेष दूधों का उपयोग किया जाता है।
- 3- आलेपन का अर्थ है शरीर पर लेप लगाना। दूध का लेप त्वचा की सुंदरता बढ़ाने, नमी बनाए रखने और त्वचा रोगों को दूर करने में सहायक है और ऊर्जा प्रदान करने के लिए किया जाता है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है।
- 4- विरेचन में– विरेचन का अर्थ है शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालना। दूध का उपयोग पाचन तंत्र को साफ करने और पेट से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने के लिए किया जाता है।
- 5- नस्य कर्म में – नस्य कर्म वह उपचार है जिसमें नाक के माध्यम से दवा दी जाती है। इसमें सिर दर्द, सर्दी और मानसिक तनाव को दूर करने के लिए दूध का उपयोग किया जाता है।
आयुर्वेद में शुद्धि (शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालना) के लिए कुछ खास पेड़ों और दूध के फायदे बताए गए हैं।
इन पेड़ पोधो को प्रयोग विशेष रूप से त्वचा संबंधी रोगों और शरीर को शुद्ध करने के लिए किया जाता है। आक और अश्वमतक जैसे पेड़ों का दूध वमन (उल्टी के माध्यम से शरीर से जहर निकालना) और विरेचन (गुदा के माध्यम से शरीर से जहर निकालना) में मदद करता है। ये त्वचा को स्वस्थ और रोगमुक्त रखने में मदद करते हैं। करंज और लोध वृक्ष की छाल का उपयोग भी विरेचन के लिए किया जाता है। ये त्वचा रोगों में अच्छे माने जाते हैं। इसके अलावा कृष्ण गंधा की छाल विरेचन और त्वचा रोगों के उपचार में लाभदायक है। यह दाद, बवासीर, कुष्ठ रोग (त्वचा रोग) और शैवाल (त्वचा की जलन) को ठीक करने में मदद करता है।
Conclusion
चरक संहिता में दूध को एक पौष्टिक पेय भोजन माना गया है। जो शरीर, दिमाग और आत्मा के लिए बेहद फायदेमंद है। चरक संहिता में विभिन्न प्रकार के दूध के गुणों और उनके सेवन के सही तरीके को समझाया गया है। गाय, भैंस, बकरी, ऊंट जैसे विभिन्न जानवरों के दूध के अपने विशेष फायदे हैं, जो वात, पित्त और कफ दोषों को संतुलित करने में सहायक होते हैं। चरक संहिता में दिए गए ज्ञान के अनुसार, दूध का उचित और मध्यम सेवन व्यक्ति की प्रतिरक्षा, मानसिक शांति और समग्र शारीरिक पोषण और विकास में में मदद कर सकता है। इस प्रकार आयुर्वेद में दूध न केवल आहार है बल्कि औषधि के रूप में भी अच्छा माना गया है।
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